सास और बहू
इतने दिनों बाद पूरा परिवार एक साथ बैठा था। ननद मेघा शादी के बाद पूरे चार महीने बाद मायके आई थी। इसलिए पूरा परिवार एक साथ बैठकर बरामदे में बतिया रहा था। वही घर की बहू कोमल सबको नाश्ता परोस रही थी। नाश्ते में कचोरी और सूजी का हलवा देखकर सास दिव्या जी बोली,
" कोमल ये क्या बनाया है तुमने? तुम्हें पता है ना मेघा को पनीर के पकोड़े पसंद है। वो पूरे चार महीने बाद ससुराल से मायके आई है, तो कम से कम नाश्ता तो उसकी पसंद का बना देती"
उनकी बात सुनकर कोमल ने कहा,
" मम्मी जी मैं गई थी दुकान पर। पर दुकान बंद थी तो पनीर नहीं मिला"
"अरे तो कॉलोनी की दुकान बंद थी तो आगे की कॉलोनी में जाकर ले आती। जानती हूँ सब बहाने हैं। मेरी बेटी को बनाकर खिलाने में जोर आता है"
दिव्या जी ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा।
" अरे, कोई बात नहीं। अब कचोरी और हलवा बन गया है तो अभी यहीं नाश्ता कर लो। अभी तो हमारी मेघा दस दिन यहीं पर है। फिर कभी बना के खिला देना"
ससुर पवन जी ने बात को वही रोकते हुए कहा।
" पर पापा, जब खाने की इच्छा होती है तभी तो खाया जाता है। इच्छा अभी हो रही है पर बाद में खिलाओगे भला ये भी कोई बात हुई। भाभी को नहीं बनाना था तो बता देती। मैं तो खुद ही रसोई में जाकर बना लेती। क्या मुझे नहीं पता, रसोई कहां है और कौन सा सामान कहां रखा हुआ है"
अब की बार मेघा ने कहा।
" मेघा क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो। जो है वो खा लो" ससुर जी ने दोबारा कहा। यह सुनकर दिव्या जी मुंह बिगाड़ते हुए बोली,
" हां, बहू के पीछे बेटी को सुना दो। इतने दिनों बाद ससुराल से आई है। यूँ नहीं कि दो बोल प्यार के बोल दो। बहू की गलती के कारण उसे सुनाया जा रहा है"
अंतिम वाक्य पर दिव्या जी ने जोर देकर कहा, जो कि कमरे में से आते हुए उनके बेटे मयंक ने सुन लिया।
आखिर उसी को सुनाने के लिए तो ये बात कही गई थी। मयंक का गुस्सा तेज है, ये बात दिव्या जी अच्छे से जानती है। पर फिर भी जानबूझकर अपने बेटे बहू में झगड़ा करवाने में कोई कमी नहीं छोड़ती। और मयंक, वो तो इतना महान है कि जरा जरा सी बात का बतंगड़ बना देता। मयंक कमरे में आते हुए बोला,
" क्या बात है कोमल? तुमने मेघा के लिए पनीर क्यों नहीं बनाया? मुझसे कहती तो मैं ऑनलाइन ऑर्डर कर देता। मना क्यों किया तुमने?"
कोमल डरते हुए बोली,
" मैंने मना नहीं किया है मयंक जी। मैं गई थी कमरे में आपको बोलने के लिए। लेकिन उस समय आप मोबाइल पर किसी से बातें कर रहे थे और आपने ही इशारे से मना किया था मुझे कि मैं चुप रहूं। इसीलिए.... । मेरे मोबाइल में भी बैलेंस नहीं है इसीलिए लेने गई थी"
" अरे हमसे बोल देती तो हम क्या मना कर देते"
दिव्या जी ने जानबूझकर बात बढ़ाते हुए बोली।
" चलो बाद में डिस्कस कर लेना अभी फिलहाल तो कचौड़ी खाओ। ठंडी हो रही है"
पवन जी ने बात पलटने की कोशिश करते हुए कहा।
" क्यों कचोरी खा ले पापा? जब मेघा की इच्छा है कि पनीर बनेगा तो पनीर ही बनेगा। इसे क्या पनीर बनाने में जोर आ रहा है जो बहाने ढूंढ रही है"
मयंक बीच में ही बोला।
" चुप कर मयंक। इतना गुस्सा भी ठीक नहीं होता है। और आज मेघा को पनीर खाना है तो एक पनीर के लिए अपनी पत्नी को कितना सुनाने को तैयार हो गया। शादी से पहले मेघा तुझ से कई चीजों की डिमांड करती थी। तब तो कभी लाकर तूने उसे दिया नहीं। फिर आज क्यों? अभी मेघा दस दिन यहां पर ही है। फिर बन जाएगा। फिलहाल चुपचाप नाश्ता करो"
आखिर पवन जी ने अपनी आवाज को थोड़ा ऊंचा कर कहा तो मयंक चुप हो गया। मयंक कितने ही गुस्से में क्या ना हो अपने पापा से ज्यादा नहीं बोल पाता था।
पर उसने गुस्से से कोमल को घूर कर देखा। कोमल का दिल धक से वही रह गया। अब मयंक क्या करेगा? ये सोचकर ही उसकी रूह कांपने लगी थी।
खैर सब लोगों ने नाश्ता किया। उसके बाद तो सब अपने-अपने काम में लग गए। मेघा अपने दोस्तों के साथ मूवी देखने निकल गई, वही दिव्या जी अपनी सहेलियों के साथ पंचायती करने पड़ोस वाले शर्मा जी की घर पर। पवन जी अपनी दुकान पर रवाना हो गए, पर संडे होने के कारण मयंक तो घर पर ही था। उसके तो ऑफिस की छुट्टी थी।
इधर कोमल रसोई में काम कर रही थी कि मयंक ने उसे आवाज दी,
" कोमल इधर कमरे में आओ। मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है"
'हे भगवान! क्या बात करनी है'
सोचते सोचते कोमल कमरे की तरफ गई। उसके पैर नहीं उठ रहे थे। पर अगर वो थोड़ा भी लेट करती तो मयंक रसोई में आकर ही शुरू हो जाता। इसलिए जैसे तैसे हिम्मत कर वो कमरे में गई। देखा तो मयंक गुस्से में था।
" जी मयंक जी, आपने बुलाया"
" मयंक जी की बच्ची। मेरे पापा से सबके सामने मुझे डांट पड़वा कर बड़ी खुश हो रही है। यही इज्जत है तेरी नजरों में मेरी। मेरी बेइज्जती करा कर तुझे बड़ा मजा आता है"
" नहीं नहीं पवन जी, मैंने तो कुछ नहीं कहा था पापा जी को। वो...."
इसके आगे तो उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। मयंक ने उससे पहले ही इतनी जोरदार झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर खिंच कर दे मारा। इतनी तेजी से वो थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा था कि एक पल के लिए सारी दुनिया ही घूम गई। चक्कर खाकर वो वहीं पर गिर गई। गिरने के कारण उसके सिर पर चोट भी लग गई और सूजन भी आ गई।
" आइंदा इज्जत से रहना। मेरे सामने ऊंची आवाज में भी मत बोलना। और ना ही मेरे माता-पिता के सामने कुछ बोलेगी। बड़ी आई मुझे दो बातें सुनवाने वाली"
मयंक उसे निरंतर सुनाए जा रहा था। जबकि कोमल को इस बात का होश भी नहीं था कि मयंक क्या-क्या बोल गया।
जब तक वो होश में आती और अपने आप को समेट पाती, तब तक तो मैं कमरे के बाहर भी निकल गया।
#भाभी
उसने सोचा की मां को फोन लगा दूं। पर फिर ये सोचकर चुप रह गई कि मां तो क्या ही कर लेगी। वो तो खुद ही मामा मामी के भरोसे है। पापा है नहीं। जब वो बहुत छोटी थी, तभी उनका देहांत हो गया था। ससुराल वालों ने मां को रखा नहीं, तो नाना जी उन्हें अपने साथ ले आए। और नाना जी के मरने के बाद मामा मामी ने ही सारी जिम्मेदारी निभाई। अपने ही दम पर उन्होंने कोमल की शादी करवाई थी। हालांकि सब कुछ देखभाल कर ही शादी की थी।
पर अब किस्मत में ही कमी लिखी हो तो क्या कर सकते हैं। अब वापस जाकर के मामा मम्मी को परेशान करना सही बात भी नहीं है। हालांकि मामा मामी ने अपनी तरफ से कभी कोई कमी नहीं छोड़ी। अपनी बेटी की तरह ही उसे रखा। पर अब तो शादी हो चुकी है। क्या अब भी वो उसी हक से वहां जा सकती है। यही सोच कर चुप रह गई और रोने लगी।
रोते-रोते उसकी आंखें सूज गई।
अब जब ससुराल वाली अच्छे से जानते हो कि बहू के मायके की तरफ से कोई बोलने वाला नहीं है तो वो भी बेलगाम हो जाते हैं। बहुत कम किस्मत वाली होती हैं जिन्हें ससुराल अच्छा मिलता है। इसलिए अपनी किस्मत पर रोती हुई कोमल कुछ ना कर सकी।
दोपहर के खाने के समय सब लोग घर में आ गए। उस समय कोमल कमरे से निकल कर रसोई में आई तो उसके सिर पर चोट के निशान थे। चेहरे से लग रहा था कि वो खूब रोई है। ये देखकर मेघा ने दिव्या जी की तरफ इशारा किया पर दिव्या जी ने भी उसे चुप रहने का ही इशारा किया। उन्होंने कोमल से एक शब्द नहीं पूछा। क्योंकि पवन जी भी वहीं बैठे हुए थे।
दोनों उसके पीछे-पीछे रसोई में आ गई। वहां जाकर मेघा ने कोमल से पूछा,
" भाभी आपके सिर पर चोट के निशान कैसे? क्या हुआ? चलते-फिरते गिर गई क्या?"
पर उसकी बात सुनकर कोमल का रोना छूट गया। अपनी सिसकियां के साथ वो बोली,
" वो तुम्हारे भैया ने मुझे..... "
" बस कर बहू। अपनी और अपने पति की बातें अपने बेडरूम तक ही रख। यहां बोलने की जरूरत नहीं है। और अपने रोने की आवाज को कम रख। बाहर तेरे ससुर जी को सुनाई देगा तो अच्छा नहीं लगता। खाना हम परोस देंगे। तू रोटियां सेक। दोपहर के खाने का वक्त हो गया है"
दिव्या जी का जवाब सुनकर कोमल हक्की-बक्की उनको देखते रह गई।
#सास #बहु
" अब देख क्या रही है ऐसे? फटाफट रोटियां सेक। हम परोस देंगे बाहर। एक तो खुद ऐसी हरकतें करती है। तुझे पता नहीं है क्या कि मयंक का स्वभाव कैसा है। फिर भी जानबूझकर उसे जवाब पर जवाब दिए जा रही थी। अब इस बात को यहीं खत्म कर। ये बात बाहर नहीं जानी चाहिए। घर की बहू हो तुम। घर की बातों को ढक कर रखो"
फिर दिव्या जी मेघा से बोली,
" मेघा तू फटाफट पापा के लिए खाना लगा"
अभी भी कोमल उन्हें हैरानी से देखती ही रही तो उसे साइड में हटाकर वो खुद ही रोटियां सेकने लगी और थाली में डालकर मेघा को देकर बोली,
" जा, तू फटाफट पापा को खाना देकर आ"
जब पवन जी ने मेघा को खाना परोसते देखा तो बोले,
" अरे मेघा। आज सूरज किधर से निकल आया? तू खाना परोस रही है। कोमल कहां गई? तू तो कभी मदद नहीं करती अपनी भाभी की"
" बस पापा, ऐसे ही। भाभी की थोड़ी तबीयत ठीक नहीं थी तो मैंने सोचा थोड़ी मदद ही कर दूं"
मेघा का जवाब सुनकर एक पल तो पवन जी हैरानी से उसे देखते रहे। फिर बोले,
" शाबाश बेटा, ऐसे ही मिलजुल कर घर का काम होता है। कहते हैं जिस घर में बहु बेटी मिलजुलकर का काम करती है, उस घर में खुशियां रहती है। ला, आज तो इस खुशी में मैं एक रोटी और ज्यादा खा लूंगा"
मेघा एक फीकी सी मुस्कान लेकर रसोई में आ गई। तब दिव्या जी कोमल से बोली,
" अब खड़ी-खड़ी देखती ही रहेगी या रोटी भी बनाएगी। चल फटाफट खाना बना। बहुत जोर से भूख लग रही है। मेघा मैं तेरे पापा के साथ बैठकर खाना खा रही हूं। तू खाना परोस। नहीं तो तेरे पापा खुशी-खुशी में रसोई में आ जाएंगे। और फिर इसके रोने चेहरे को देखकर बेवजह दो बातें हमें और सुनाएंगे"
कहकर दिव्या जी बाहर आ गई और मेघा खाना परोसने लगी। जब पवन जी ने खाना खा लिया तो तब तक मयंक भी घर पर आ गया। दिव्या जी ने मेघा को मयंक के साथ ही बिठा दिया और खुद खाना परोसने लगी। पर एक बार भी कोमल को पवन जी के सामने नहीं आने दिया। जब पवन जी चले गए तो कोमल को आवाज लगाकर बोली,
" अब महारानी, खुद ही परोस दे खाना। बेवजह थका दिया अंदर बाहर कर के "
और फिर मयंक से बोली,
" इस तरह से मारता है क्या कोई? देख चेहरे पर निशान पड़ गया। किस तरह तेरे पापा से छुपा के रखा है, हम जानते हैं। अभी इसका उनसे सामना आना होता, और उनका चिल्लाना होता तुझ पर। थोड़ी अकल तू भी रखा कर। अपने गुस्से को थोड़ा ठंडा कर"
" आप गुस्सा ठंडा करने की बात कर रहे हो। मेरा मन तो कर रहा था कि अच्छा खासा पीट दूं उसे। पर फिर चुप रह गया यही बड़ी बात है। अब आप मुझे मत समझाओ"
आखिर मयंक के सामने दिव्या जी भी चुप हो गई।
सब लोग खाना खाकर अपने-अपने कमरे में चले गए जबकि कोमल वही बाहर एक तरफ बैठ गई। तभी घर की डोर बेल बजी। कोमल दरवाजा खोलने के लिए दरवाजे की तरफ जाने ही लगी कि तब तक दिव्या जी बाहर निकल कर आ गई,
" ये क्या पागलपन कर रही है तू? पहले अपने चेहरे को तो सही कर ले। दुनिया को दिखाएंगी क्या? जा अपने कमरे में "
दिव्या जी की लताड़ सुनकर कोमल अपने कमरे में आ गई। दिव्या जी ने दरवाजा खोला तो सामने कोमल के मामा मामी खड़े थे। उन्हें देखकर एक पल के लिए तो उनका दिल जोरो से धड़कने लगा। भला कोमल को इनसे कैसे छुपाए?
" अरे आप लोग? आज अचानक?"
इतने में मयंक भी निकल कर बाहर आ गया,
" मम्मी कौन है?"
अचानक कोमल के मामा मम्मी को सामने देखकर वो वही ठिठक कर खड़ा रह गया।
" अरे समधन जी, अंदर भी बुलाएंगे या बाहर से विदा करेंगे" अचानक मामा जी मजाक करते हुए बोले। उनकी बात सुनकर दिव्या जी झेंप गई और उन्हें घर में ले आई। तभी मयंक उन्हें नमस्ते कर कमरे में जाने लगा,
" मैं अभी कोमल को बुला कर लाता हूं"
कहकर वो कमरे में गया और कोमल को धमकाते हुए बोला,
" अपनी जबान खोलने की जरूरत नहीं है। चुपचाप रहना। और कुछ भी बहाना कर देना कि तुम्हें चोट कैसे लगी है। कह देना कि गिर गई थी इसलिए चोट लगी है। समझी तुम। आखिर मामा मामी है। तुम्हारी मां का बोझ उठा रहे हैं, वही बड़ी बात है"
आखिर कोमल अपने कपड़े वगैरह सही करके बाहर आई तो उसके चेहरे की चोट देखकर मामा मामी दोनों खड़े हो गए,
" कोमल ये क्या हो गया तुझे?"
" जी वो आज ये गिर गई थी। इस कारण से सिर पर चोट लग गई"
मयंक बहाने बनाते हुए बोला।
पर मामा मामी को देखकर कोमल का रोना छूट गया उसे यू फूट-फूट कर रोता देखकर मामी उसके पास आई और उसे अपने गले लगाते हुए बोली,
" क्या बात है कोमल बेटा? सच सच बोल। कुछ मत छुपा"
" अरे कैसी बात कर रही है आप? इतने दिनों बाद आप लोगों को देखा है तो शायद इसलिए रोना छूट गया होगा"
दिव्या जी बात संभालते हुए बोली।
" ना ना समधन जी, यह बात तो नहीं है। हमारी कोमल इतनी भी कमजोर नहीं है"
अचानक मामी जी बोली।
" अरे तो मामी जी, आप कोमल से ही पूछ लीजिए"
मयंक बीच में ही बोला।
" नहीं मामी जी, मुझे मेरे पति ने मारा है"
अचानक कोमल ने बोला तो सभी लोग सकते में आ गए।
" ऐसे कैसे आपने हाथ उठा दिया हमारी बच्ची पर?"
मामा जी दिव्या जी से बोले।
" अरे ये तो उनके बेडरूम की बात है। पति-पत्नी के बीच की बातें हैं। मेरे हिसाब से इन लोगों का आपस में ही हल कर लेना चाहिए। इसमें भला हम लोग क्या बोलेंगे"
दिव्या जी उन्हें समझाते हुए बोली।
" समधन जी, यही बात जब आपकी मेघा पर हो तब बोलिएगा। हम हमारी बेटी के लिए ये सब सुनने के लिए यहां नहीं आए हैं। जब बड़े लोग ही अपना पल्ला झाड़ ले तो भला ऐसे घर में हम अपनी बेटी को रखकर क्या करेंगे? माफ करना समधन जी। हमारी बेटी हमको भारी नहीं हुई है। ले जाएंगे हम इसे यहां से। बेटी की शादी मार खाने के लिए नहीं की है हमने "
" लेकिन, मेरी बात तो सुनिए..."
दिव्या जी ने कहना चाहा। पर मामा मामी ने एक न सुनी और वो कोमल को वहां से ले गए। जब पवन जी को इस बात का पता चला तो वो भी बहुत गुस्सा हो गए। जब दिव्या जी ने और मयंक ने कोमल को वापस लाने के लिए कहा तो पवन जी ने खुद ही इससे इंकार कर दिया।
कुछ दिनों बाद कोमल ने मयंक से तलाक ले लिया। और आज वो अपने पैरों पर खड़े होने के लिए आगे की पढ़ाई जारी कर चुकी है। लेकिन इन सब के बाद मयंक की इतनी बदनामी तो हो गई कि दूसरी शादी के लिए कोई भी उसे अपनी लड़की देने को तैयार नहीं हुआ।
Writter: A A CHOUDHARY
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