Schchi samaz sewa

सच्ची समाज सेवा

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प्राइवेट बस थी। खचाखच भरी थी। प्रयागराज से बनारस जा रही थी। इसी भीड़ में एक औरत जो गर्भवती थी। वह भी बनारस जा रही थी। 


सीट पर से कोई उठना नही चाह रहा था कि उस महिला को कोई सीट दे दे। कोई आगे नहीं आया। काफी देर तक खड़ी रही पर कोई भारतीय संस्कार दिखाने को तैयार नहीं था। 


स्वार्थ भरा था। किसी का दिल नहीं पसीजा। नालायक माहौल था। बेहूदा कहीं के। उठ जाओगे तो कुछ हो जायेगा। किसी ने हिम्मत नहीं जुटाई। वह महिला कई बार कई लोगों से निवेदन भी किया। अपने हालात को भी लोगों को बताया। 


भयंकर गर्मी। पसीने से तरबतर। कोई इस तरह से युवक, बुजुर्ग, बच्चा ,अधेड़ सब उस महिला को ताकते रह गए लेकिन कोई हमदर्दी नहीं दिखाई। अब हालत ऐसे उस महिला के साथ होते जा रहे हैं कि जैसे वह अब गिर जायेगी।


भीड़ से एक आवाज निकली। 


"बेटी, यहां आइए बैठिए" एक बेहद बुजुर्ग, एक पैर उसका कटा हुआ। लाठी का सहारा लेकर अपनी सीट से उठता हुआ बोला। वह बूढ़ा पूरी तरह से सीट छोड़ चुका था। थकी हारी वह गर्भवती महिला सीट पर बैठ गई। बहुत ही रिलैक्स महसूस किया।


सीट पर बैठने के बाद उस महिला की निगाह उस बुजुर्ग पर गई जिसने उसके लिए सीट छोड़ा था। यहां तक कि बस में बैठे लोगों की निगाहें उस बुजुर्ग पर गई जिसने इस अवस्था में उस बुजुर्ग महिला के लिए सीट छोड़ा था। उस बुजुर्ग के प्रति सच्ची समाज सेवा के लिए मन ही मन लोग तारीफ करने लगे।


लोगो ने जानकारी ली तो पता चला कि वह एक बदमाश से, एक महिला की आबरू बचाने के लिए लड़ बैठा था। उस बदमाश के द्वारा पैर में गोली लग गई थी। बाद में पैर को कटवाना पड़ा था। 


हाल ही में पता चला कि उस महिला के पति ने देश के लिए अपनी जान गंवा दी। देश के लिये शहीद हो गए। सीट न देने वाले खुद शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे 

Writer : A A CHOUDHARY

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